श्री दुर्गा चालीसा

5 (1)

">श्री दुर्गा चालीसा
5 (1)

श्री दुर्गा चालीसा नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥1॥तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम[…]

Read More »