आज का पंचांग

आज का पंचांग 🌞 04 जून 2022 🚩

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🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
🌤️ दिनांक – ०४ जून २०२२
🌤️ दिन – शनिवार
🌤️ विक्रम संवत – २०७९
🌤️ शक संवत -१९४४
🌤️ अयन – उत्तरायण
🌤️ ऋतु – ग्रीष्म ऋतु
🌤️ मास – ज्येष्ठ
🌤️ पक्ष – शुक्ल
🌤️ तिथि – पंचमी ०५ जून प्रातः ०४:५२ तक तत्पश्चात षष्ठी
🌤️ नक्षत्र – पुष्य ०९:५५ तक तत्पश्चात अश्लेशा
🌤️ योग – ध्रुव ०५ जून प्रातः ०४:२० तक तत्पश्चात व्याघात
🌤️ राहुकाल – प्रातः ०९:१७ से सुबह १०:५७ तक
🌞 सूर्योदय – ०५:५७
🌝 सूर्यास्त – १९:१६
🌤️ दिशाशूल – पूर्व दिशा में
🌤️ ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः ०४:२९ से ०५:१२ तक
🌤️ निशिता मुहूर्त – रात्रि ००:१७ से ००:५७ तक
🌤️ व्रत पर्व विवरण – महादेव विवाह (ओड़िशा), संत टेउॅरामजी पुण्यतिथि
🌤️ विशेष – पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः २७.२९-३४)
ब्रह्म पुराण’ के ११८ वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं- ‘मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई पीड़ा नहीं होगी जो शनिवार को प्रातःकाल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।’ (ब्रह्म पुराण’)
शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए ‘ॐ नमः शिवाय।’ का १०८ बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है। (ब्रह्म पुराण’)
हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है ।(पद्म पुराण) 🌹नौकरी – व्यवसाय में सफलता, आर्थिक समृद्धि एवं कर्ज मुक्ति हेतु कारगर प्रयोग…
🌹पद्म पुराण के अनुसार हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है।
🌹शनिवार के दिन पीपल में दूध, गुड़, पानी मिलाकर चढ़ायें एवं प्रार्थना करें – ‘ हे प्रभु ! आपने गीता में कहा है कि वृक्षों में पीपल मैं हूँ। हे भगवान ! मेरे जीवन में यह परेशानी है। आप कृपा करके मेरी यह परेशानी ( परेशानी , दुःख का नाम लेकर ) दूर करने की कृपा करें। पीपल का स्पर्श करें व प्रदक्षिणा करें।📖श्री मद्भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 17
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानव:।
आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्य न विद्यते।।
श्लोक का सरलीकरण
य:तु आत्मरति:एव स्यात् आत्मतृप्त:च मानव:।
आत्मनि एव च संतुष्ट तस्य कार्यम् न विद्यते।।
शब्दार्थ:-
तु=परंतु
य: मानव:=जो मनुष्य
आत्मरति एव=(ज्योतिर्बिन्दु रूप) आत्मा में ही प्रीति वाला है
च=और
आत्मतृप्त:=आत्मा से तृप्त
च=उसी तरह
आत्मनि=आत्मा में
एव=ही
संतुष्ट:=अत्यंत प्रसन्न
स्यात्=हो
तस्य=उसके लिए
कार्यम्=कोई कार्य
न विद्यते=नहीं रहता।(जैसे सतयुगी देवात्माएँ)
भावार्थ:- परंतु जो मनुष्य ज्योतिर्बिन्दु रूप आत्मा में ही प्रीति वाला और आत्मा से तृप्त,उसी तरह आत्मा में ही अत्यंत प्रसन्न हो, उसके लिए कोई कार्य नहीं रहता। (जैसे सतयुगी देवात्माएँ)
📖 ✍️पंचांग संपादक :~ आपका ज्योतिष
www.aapkajyotish.in. 🚩🕉️🙏

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